Saturday, February 23, 2008

ग़ालिब- दिल ही तो है

दिल ही तो है न संग-ओ-खिश्त, दर्द से भर ना आए क्यों,

रोयेंगे हम हज़ार बार, कोई हमें सताए क्यों।

दैर नहीं, हरम नहीं, दर नहीं , आस्तां नहीं,
बैठे हैं रह-गुज़र पे हम, गैर हमें उठाये क्यों?

कैद-ऐ-हयात - -बंद-ऐ-गम, अस्ल में दोनों एक हैं,

मौत से पहले आदमी, गम से निजात पाये क्यों?

वाँ वह गरूरे -इज्जो -नाज़, याँ यह हिजाबे- पासे वजा,
राह में हम मिलें कहाँ, बज्म में वह बुलाए क्यों?

हाँ, वह नहीं खुदा परस्त, जाओ वह बेवफा सही,
जिसको हो दीनो-दिल अज़ीज़, उसकी गली में जाए क्यों?

ग़ालिब -ऐ-खस्ता के बगैर कौन से काम बंद हैं?

रोईये जार-जार क्या? कीजिये हाय- हाय क्यों?

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