Wednesday, February 27, 2008

ग़ालिब- बाज़ीचा-ऐ-अत्फाल

बाज़ीचा-ऐ-अत्फाल है दुनिया मेरे आगे,
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे.

होता है निहां गर्द में, सेहरा मेरे होते,
घिसता है ज़मीं ख़ाक पे दरिया मेरे आगे

मत पूछ की क्या हाल है मेरा, तेरे पीछे,
तू देख की क्या रंग है तेरा, मेरे आगे

ईमां मुझे रोके है, जो खींचे है मुझे कुफ्र,
काबा मेरे पीछे है, कलीसा मेरे आगे

गो हाथ को जुम्बिश नहीं, आखों में तो दम है,
रहने दो अभी सागर-ओ-मीना मेरे आगे.

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