Friday, March 21, 2008

ग़ालिब का है अंदाजे- बयान और (७)

है बस की, हर यक उनके इशारे में निशाँ और,
करते हैं मुहब्बत, तो गुजरता है गुमाँ और.

या रब, न वो समझे हैं ना समझेंगे मेरी बात,
दे और दिल उनको, जो न दे मुझको जुबाँ और.

तुम शहर में हो, तो हमें क्या गम, जब उठेंगे
ले आयेंगे बाज़ार से, जा कर, दिलो-जान और
.

मरता हूँ इस आवाज़ पे, हरचंद सर उड़ जाए,
जल्लाद को, लेकिन, वो कहे जाएं की- हाँ, और.

लोगों को है खुर्शीदे-जहाँ-ताब का धोका,
हर रोज़ दिखता हूँ मैं यक दागे- निहां और.

पाते नहीं जब राह, तो चढ़ जाते हैं नाले,
रूकती है मेरी तबः, तो होती है रवां और.

हैं और भी दुनिया में सुखनवर बहुत अच्छे,
कहते हैं, की ग़ालिब का है अंदाजे- बयान और.

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