ये न थी हमारी किस्मत की विसाल-ऐ-यार होता
अगर और जीते रहते, यही इंतज़ार होता.
तेरे वादे पर जीये हम, तो ये जान झूठ जाना,
की खुशी से मर ना जाते, अगर ऐतबार होता
कोई मेरे दिल से पूछे, तेरे तीर-ऐ- नीमकश को,
ये खलिश कहाँ से होती, जो जिगर के पार होता.
ये कहाँ की दोस्ती है की बने हैं दोस्त नासेह,
कोई चारा-साज़ होता, कोई गमगुसार होता
कहूं किस-से मैं की क्या है, शब-ऐ-ग़म बुरी बला है,
मुझे क्या बुरा था मरना, अगर एक बार होता.
हुए मर के हम जो रुसवा, हुए क्यों न गर्क-ऐ-दरिया,
न कभी जनाजा उठता, न कहीं मजार होता.
यह मसायिले तसव्वुफ़, यह तेरा बयान ग़ालिब,
तुझे हम वली समझते, जो न बादाख्वार होता
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